भगवान श्रीकृष्ण से श्रीमद्भागवत गीता में वेद वाक्यों में स्वर्ग दिलाने
वाले वाक्यों से प्रीति रखने वाले लोगों को अज्ञानी बताया है। हमारे यहां से
धार्मिक सत्संग तथा अन्य सामूहिक कार्यक्रमों की परंपरा रही है जिसमें अनेक पेशेवर
विद्वान लोगों को स्वर्ग का मोह दिखाते हैं।
उन्हें कथित रूप से स्वर्ग प्राप्ति के लिये काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार से
मुक्त होकर कार्य करने के लिये प्रेरणा देते हैं। ऐसे कथित विद्वान स्वयं सारी
जिंदगी संपति, शिष्य तथा प्रतिष्ठा अर्जित करने में बिताते हैं पर दूसरों को भ्रम में
डालते हैं।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि-----------------------स्वपरप्रतारकोऽसौ निन्दति योऽलीपण्डितो युवतीः।यस्मामात्तपसोऽपि फलं स्वर्गस्तस्यापि फलं तथाप्सरसः।।हिन्दी में भावार्थ-शास्त्रों के ज्ञान का अधकचरा ज्ञान रखने वाले अनेक कथित विद्वान अपने तथा पराये सभी को धोखा देते हैं क्योंकि वह जिस तप की बात करते हैं वह स्वर्ग की प्राप्ति के लिये होता है जहां अप्सरायें और भोग विलास की प्रधानता है।
हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार हर मनुष्य अपने कर्म का फल स्वयं ही
भोगता है। वह अपने संकल्प के अनुसार ही अपने जीवन में स्वर्ग और नरक का वातावरण
बनाता है। यह संभव नहीं है कि मनुष्य का
कर्म दूसरा भोगे। मनुष्य स्वयं ही अपने को
संकट में डालता है या उद्धार करता है।
कितना भी सत्संग, भजन और शास्त्र पढ़ ले जब तक उसके कर्म, विचार और बुद्धि शुद्धि नहीं होगी तब तक कष्ट
ही भेागेगा। योग साधना से अपनी देह, मन और विचारों को शुद्ध
रखने वाले इस संसार में स्वर्ग न भोगें पर कम से कम नारकीय स्थिति से दूर रहते
हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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