Tuesday, July 22, 2014

संभावित क्लेश की आशंका हृदय में न लायें-पतंजलि योग साहित्य पर आधारित चिंत्तन लेख(sanbhavit klesh ko dridya mein sthaan n len-A Hindu hindi religion thought basd on patanjali yog sahitya)


      मनुष्य शब्द का विश्लेषण करें तो वह मन और उष्णा स्वर का बोध होता है।  वैसे तो सभी जीवों में मन होता है पर मनुंष्य में उसकी उष्णा-जिसे हम तीर्व्र अिग्न का प्रतीक कह सकते हैं-अधिक होती है।  मनुष्य का मन ही उसका वास्तविक स्वामी है। कभी वह प्रफुल्लित होता है कभी आत्मग्लानि को बोध से ग्रस्त होकर शांत बैठ जाता है। कभी आर्थिक, सामाजिक या रचना के क्षेत्र में अपनी भारी सफलता का सपने देखता है।  यही मन मनुष्य को भौतिक संपदा के संचय में इसलिये भी फंसाये रहता है कि कभी विपत्ति आ जाये तो उसका सामना माया की शक्ति से किया जाये।  हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि खाने धन जरूरी है पर खाने के लिये बस दो रोटी चाहिये।  मनुष्य का मन भूख, बीमारी तथा दूसरे के आक्रमण को लेकर हमेशा चिंतित रहता है।  उसे लगता है कि पता नहीं कब कहां से दुःख आ जाये। इस तरह मन की यात्रा चलती है पर सामान्य मनुष्य इसे समझ नहीं पाता। संसार में सुख और दुःख आता जाता है पर मनुष्य का मानस हमेशा ही उसे संभावित आशंकाओं भयभीत रखता है।
महर्षि पतंजलि के योगशास्त्र में कहा गया है कि
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हेयं दुःखमनागतम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जो दुःख आया नहीं है, वह हेय है।
      योग साधक और अध्यात्मिक ज्ञान के छात्र इस मन पर नियंत्रण करने की कला जानते हैं।  योग तथा ज्ञान साधक हमेशा ही सामने आने पर ही समस्या का निवारण करने के लिये तैयार रहते हैं। देह, मन तथा विचारों पर उनका नियंत्रण रहता है इसलिये वह संभावित दुःखों से दूर होकर अपनी जीवन यात्रा करते हैं।  देखा जाये तो अनेक लोग तो भविष्य की चिंताओं में अपनी देह, विचार तथा मन में बुढ़ापा लाते हैं।  एक बात तो यह है कि लोग अपने  अध्यात्मिक दर्शन का यह संदेश अपने मस्तिष्क में धारण नहीं करते कि समय कभी एक जैसा नहीं रहता।  दूसरी बात यह कि भगवान उठाता जरूर भूखा  है पर सुलाता नहीं है।  इसके बावजूद लोग यह भावना अपने मन में धारण किये रहते हैं कि कभी उनके सामने रोटी का संकट न आये इसलिये जमकर धन का संचय किया जाये।
      योग दर्शन की दृष्टि से जो दुःख आया नहीं है उसकी परवाह नहीं करना चाहिये।  धन या अन्न का संग्रह उतना ही करना जितना आवश्यक हो पर उसे देखकर मन में यह भाव भी नहीं लाना चाहिये कि वह भविष्य के किसी संकट के निवारण का साथी है। हमारे पास भंडार है यह सोच जहां आत्मविश्वास बढ़ाती है वहीं भविष्य की आशंका उससे अधिक तो देह का खून जलाती है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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