अनेक कथित धार्मिक गुरु यह तो कहते हैं कि मोह,
माया, अहंकार तथा क्रोध का त्याग करें पर न तो वह स्वयं उनके
प्रभाव से मुक्त हैं न वह अपने शिष्यों को कोई विधि बता पाते हैं। सत्य और माया के
बीच केवल अध्यात्मिक ज्ञानी और साधक ही समन्वय बना पाते हैं। एक बात तय है कि सत्य
के ज्ञान का विस्तार नहीं है पर माया का ज्ञान अत्यंत विस्तृत है। कोई ऐसा बुरा काम नहीं करना चाहिये दूसरे को
पीड़ा यह सत्य का ज्ञान है यह सभी जानते हैं पर माया के पीछे जाते हुए अनेक ऐसे काम
करने पड़ते हैं जिनके उचित या अनुचित होने ज्ञान सभी को नहीं होता। माया के अनेक रूप हैं सत्य का कोई रूप नहीं है।
अनेक रूप होने के कारण धन, संपदा
तथा उच्च के पद की प्राप्ति के लिये अनेक प्रकार के मार्ग हैं। हर मार्ग का ज्ञान अलग है। स्थिति यह है कि लोग
धन और संपत्ति प्राप्त करने के मार्ग बताने वालों को ही धार्मिक गुरु मान लेते
हैं। मजे की बात तो यह है कि ऐसे गुरु श्रीमद्भागवत गीता से निष्काम कर्म तथा
निष्प्रयोजन का संदेश नारे के रूप में देते देते ही मायावी संसार का ज्ञान देने
लगते हैं। इस संसार में माया की संगत
जरूरी है पर सत्य का ज्ञान हो तो माया दासी होकर सेवा करते हैं वरना स्वामिनी होकर
नचाने लगती है।
कौटिल्य महाराज ने अपने अर्थशास्त्र में कहा है कि
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वे शूरा येऽपि विद्वांतो ये च सेवाविपिश्चितः।
तेषा मेव विकाशिन्यों भोग्या नृपतिसम्भवः।।
हिन्दी
में भावार्थ-जिस मनुष्य में
वीरता, विद्वता और सेवा करने का
गुण है वही भोग के लिये सम्पत्ति प्राप्त
करता है।
कुलं वृत्तञ् शौर्य्यञ्च सर्वमेतन्ना गभ्यते।
दुवृतेऽश्न्यकुलीनेऽप जनो दातरि रज्यते।।
हिन्दी में भावार्थ-कुल, चरित्र
और वीरता को भी कोई ऐसे नहीं सराहता। दुष्ट तथा अकुलीन भी अगर दातार हो तो सामान्य
जन उसमें अनुराग रखते हैं।
अध्यात्मिक ज्ञानी मानते हैं कि मनुष्य अगर
अपने अंदर ज्ञान साधना कर सत्य समझ ले तो उसमें वीरता और पराक्रम के गुण स्वतः आ
जाते हैं और तब वह इस संसार में माया का स्वामी बनता है पर उसे अपनी स्वामिनी बनकर
नचाने का अवसर नहीं देता। दूसरी बात यह है
कि ज्ञानी आदमी धन का व्यय इस तरह करता है कि उसके आसपास के लोग भी प्रसन्न रहें।
वह दान और सहायता के रूप में ऐसे लोगों को धन या वस्तुऐं देता है जो उसके लिये
सुपात्र हों। जिन लोगों के पास अध्यात्म ज्ञान नहीं है वह पैसा, पद और प्रतिष्ठा के मद में दूसरों को छोटा
समझकर उनकी उपेक्षा कर देते हैं जिससे उनके प्रति समाज में विद्रोह का भाव निर्माण
होता है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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