जीवन
में सुख दूख आते जाते हैं। यह अलग बात है कि
सुख का समय लंबा होने से आदमी आत्ममुग्ध हो जाता है। जऐ जब दुःख
के पल कम होने पर भी निकल जाने तक अत्यंत मुश्किल लगते हैं। कहीं वह अधिक लंबे हुए
तो आदमी टूट जाता है। दूसरी बात यह भी है कि
सुख के समय आदमी धन का संचय तो करता है पर मित्र संग्रह पर उसका ध्यान नहीं होता। भौतिक
उपलब्धियां उसे इतना आत्ममुग्ध कर देती हैं उसे लगता है कि मायावी संसार में बिना मांगे
मित्र ही उसके पास आ जायेंगे। सच बात तो यह
है कि धन की खुशबु पाकर कोई भी मित्र बन जाता है पर ऐसे लोगों की विपत्ति में सहायता
नहीं मिलती। धन, बाहुबल, और पद की श्रेष्ठता के कारण कोई भी दरबार लगा सकता है। ढेर सारे दरबारी भी मिल
जायेंगे पर ऐसा मित्र जो विपत्ति में सहायता करे, समय पड़ने पर मुश्किल है।
कविवर रहीम कहते हैं कि
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धन दारा अस सुतन सों, लगो रहे नित चित्त।।
नहिं ‘रहीम’ कोऊ लख्या, गाढ़े दिन को मिल।
सामान्य हिन्दी में भावार्थ-जब मनुष्य के पास धन,
पत्नी और पुत्र का
सुख होता है तब उसी में ही सारा ध्यान लगाये रहता है। जब कोई विपत्ति आती है तब वह
सहायता के लिये इधर उधर ताकता है। उसी समय उसे भगवान की याद आती है।
कहने का
अभिप्राय यह है कि जब हमारा समय ठीक चल रहा हो तब भी भविष्य में बुरे समय की आशंकाओं
का अनुमान अवश्य करते रहना चाहिये। उसके अनुसार ही ऐसा प्रबंध भी करें ताकि कोई प्रतिकूल
परिस्थितियां आयें तो उनका सामना किया जा सके।
साथ ही जब अपने पास भौतिक सुख हो तब भी अपनी अध्यात्मिक चेतना को जाग्रत रखते
हुए अहंकार तथा मद से दूर रहते हुए सभी से अपना व्यवहार बनाये रखना चाहिये। समय पड़ने
पर कौन काम आ जाये यह कोई नहीं जानता।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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