पिछले कई
दिनों से भारतीय प्रचार माध्यम स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराधों की घटनाऐं प्रचारित
कर समाज की स्थिति का रोना रोते हुए अपने विज्ञापन
का समय पास कर रहे हैं। अनेक प्रकार की बहस
होती है पर निष्कर्ष के रूप में नतीजा शून्य
ही रहा है। सच बात तो यह है कि हमारे देश की ही नहीं वरन् पूरे विश्व की दंडप्रणालियां अत्यंत
अपराधों के अन्वेषण तथा विलंब से निर्णय करने
का कारक बन गयी हैं। दूसरी बात यह है कि अपराध
अन्वेषण तथा न्यायिक प्रणाली के सदुपयोग की योग्यता जिन लोगों में अधिक नहीं है वह भी राज्य कर्म में लिप्त होकर समाज की रक्षा
का जिम्मा ले लेते हैं। पुरातन सभ्यताओं में
अपराध की प्रकृत्ति के अनुसार दंड की व्यवस्था थी। इनमें कई सजायें क्रूर थी जिनको
पश्चिमी सभ्यता के लोग पशुवत मानते थे। अपने
को सभ्य समाज साबित करने के लिये पश्चिम के लोगों ने पशुवत अपराधों के प्रति भी मानवीय
दृष्टिकोण अपनाने का सिद्धांत स्थापित किया जिससे समाज में अपराध बढ़े ही हैं।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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यदि प्रणयेराजा दण्डं उण्ड्येष्वतन्द्रितः।
शले मत्स्यानिवापक्ष्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः।
हिन्दी में भावार्थ-जब राज्य अपनी प्रजा की रक्षा करने के लिये
अपराधियों को दंड देने में सावधानी से काम नहीं करता तब अव्यवस्था फैलती है। शक्तिशाली
मनुष्य कमजोर लोगों पर भारी अनाचार करने लगते हैं।
अद्यात्काकः परोडाशं श्वा लिह्याद्धविस्तथा।
स्वाम्यं च न स्यात्कस्मिंश्चित्प्रवर्तेताधरोत्तरम्
हिन्दी में भावार्थ-जब राज्य अपराधियों को दंड नहीं देता तो कौआ
पुरोडाश खाने लगेगा, कुत्ता
हवि खाकर स्वामी की बात नहीं मानेगा और समाज उच्च से निम्न स्थिति में चला
जायेगा। |
हमारा
दर्शन मानता है कि कुत्ते की पूंछ कभी सीधी नहीं हेाती जबकि पश्चिमी दर्शन अपराधियों
के सुधरने की कल्पनातीत आशा पालता है। उहापोह
फंसे हमारे देश की स्थिति दिन ब दिन इसलिये बिगड़ती जा रही है क्योंकि हमारे यह अपराध
तथा अन्वेषण तथा न्यायालय में उनके प्रमाणीकरण
में विलंब होता है। अनेक अपराधी तो अपने पुराने
अपराध के लिये क्षमा तक की आशा करते हैं। कुछ
तो बिना सजा के ही देह छोड़ जाते हैं। जब तक
हम अपने देश के मूल स्वभाव के अनुसार अपराध के अन्वेषण तथा उनके दंड देने की कोई तीव्र
प्रणाली नहीं अपनायेंगे तब तक भयमुक्त समाज की आशा करना व्यर्थ है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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