पंचतत्वों से बनी मनुष्य देह में जितनी बुद्धि और विवेक की शक्ति है उतना ही उसमें अहंकार भरा पड़ा है जिससे प्रेरित हर कोई अपने आपको श्रेष्ठ कहलाना चाहता है। देखा जाये तो अध्यात्म को विषय जहां अकेले में चिंत्तन करने का विषय है तो धार्मिक कर्मकांड भी किसी स्थान विशेष पर करने के लिये होते हैं। अगर कोई व्यक्ति अकेले में करे तो बात समझ में आती है पर देखा यह जाता है कि कुछ श्रेष्ठता के मोह में फंसे कुछ लोग गुरु की पदवी धारण कर सार्वजनिक रूप से यह काम करते हैं। कोई यज्ञ करा रहा है तो कोई प्रवचन का आयोजन कर रहा है। इतना ही नहीं कहीं गरीबों को सामूहिक रूप से खाना खिलाने का पाखंड भी हो्रता है जो कि अधर्म का ही प्रमाण है। कहा जाता है कि अपने दान और धर्म का प्रचार नहीं्र करना चाहिए। इतना ही नहीं दान देते समय आंखें झुका लेना चाहिए ताकि लेने वाले व्यक्ति के मन में हीनता न आये। जबकि सार्वजनिक रूप से धर्म का विषय बनाने वाले इन सब बातों से दूर रहकर आत्मप्रचार में लिप्त दिखते हैं।
दास मलुक कहते हैं कि
------------
प्रभुता ही को सब मरै, प्रभु को मरै न कोय।
जो कोई प्रभु को मरै, तो प्रभुता दासी होय।।
‘‘इस संसार में सभी लोग प्रभुता को मरे जा रहे हैं पर प्रभु के लिये किसी के मन में जगह नहीं है। जिस मनुष्य के मन में परमात्मा विराजते हैं प्रभुता उसकी दासी हो जाती है।’’
सुमिरन ऐसा कीजिए, दूजा लखै न कोय।
ओंठ न फरकत देखिये, प्रेम राखिये गोय।।
‘‘प्रभु के नाम का स्मरण दिखावे के लिये न करें। इस तरह नाम जपिये कि कोई ओंठ का फड़कना भी न देख सके और हृदय के अंदर प्रभु का प्रकाशदीप जलता रहे।’’
लाउडस्पीकरों के साथ भीड़ में परमात्मा के नाम का जोर जोर से स्मरण करना भी एक तरह का पाखंड है। नाम हमेशा मन में लिया जाना चाहिए। इस तरह कि कोई ओंठों का हिलना भी न देख सके। कहने का अभिप्राय यह है कि अध्यात्म और धर्म नितांत निजी विषय हैं और इनसे दैहिक और मानसिक लाभ तभी मिल सकता है जब हम उसका दिखावा न करें। यहां तक कि अपनी गतिविधि दूसरों को न बतायेे। अगर ऐसा करते हैं तो सारा लाभ अहंकार की धारा में बह जाता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
1 comment:
सत्य वचन, आभार!
Post a Comment