हम इस संसार को अपने हिसाब से नहीं चला सकते यह बात समझ लेना चाहिए। अक्सर हम लोग इस गलतफहमी में रहते हैं कि हम अपने प्रभाव से दूसरे लोगों को सुधार लेंगे। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार इस संसार में प्राणी समुदाय त्रिगुणमयी माया से मोहित हो रहा है। हर आदमी अपने स्वाभाविक गुणों के अनुसार व्यवहार करता है। हम लाख कोशिश करें पर जब तक दूसरे आदमी में किसी कार्य या व्यवहार का गुण नहीं है वह उसे हमारे अनुसार नहीं करेगा। रिश्ते और परिवार में जिनके पास अधिकार है वह कभी भी अपना अहंकार छोड़कर व्यवहार नहीं कर सकते। व्यवसाय और नौकरी में भी हम देखते हैं कि अधिकारी लोग अपनी जिद्द नहीं छोड़ते। सच बात तो यह है कि जब हम देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात करते हैं तो यह बात सामने आती है कि कुछ लोगों को समाज का भाग्यनियंता बनने का अधिकार मिल गया है जो उसका दोहन अपने अहंकार की पूर्ति तथा घर भरने के लिये करते है। राज्य का हस्तक्षेप समाज में इस तरह है कि मामूली से मामूली अधिकारी भी किसी सम्मानीय आदमी को अपमानित कर सकता है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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निस्मृहो नाऽधिकारी स्यान्नाकारी मण्डनप्रियः।
नाऽविदगधः प्रियं ब्रूयात् स्पष्टवक्ता न वञ्चकः।।
‘‘जिसके पास अधिकार है वह आकांक्षा रहित नहीं हो सकता। सौंदर्य का पुजारी अकाम नहीं हो सकता। मूर्ख व्यक्ति कभी प्रिय वचन नहीं बोल सकता तो हमेशा स्पष्टभाषी कभी धोखा नहीं देता।
’’मूर्खाणा पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः।
वाराऽंगना कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भागाः।। ‘‘बुद्धिहीनों के शत्रु विद्वान, निर्धनों के शत्रु धनवान, खानदानी स्त्रियों की शत्रु वैश्यायें और सुहागन की शत्रु विधवायें होती है।’’
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निस्मृहो नाऽधिकारी स्यान्नाकारी मण्डनप्रियः।
नाऽविदगधः प्रियं ब्रूयात् स्पष्टवक्ता न वञ्चकः।।
‘‘जिसके पास अधिकार है वह आकांक्षा रहित नहीं हो सकता। सौंदर्य का पुजारी अकाम नहीं हो सकता। मूर्ख व्यक्ति कभी प्रिय वचन नहीं बोल सकता तो हमेशा स्पष्टभाषी कभी धोखा नहीं देता।
’’मूर्खाणा पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः।
वाराऽंगना कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भागाः।। ‘‘बुद्धिहीनों के शत्रु विद्वान, निर्धनों के शत्रु धनवान, खानदानी स्त्रियों की शत्रु वैश्यायें और सुहागन की शत्रु विधवायें होती है।’’
हमने देखा है कि भ्रष्टाचार के विरोध करने वाले भी समाज में राज्य का हस्तक्षेप करने की बजाय नये पद सृजन पर जोर देते हैं। जहां अधिक कानूनों को भ्रष्टाचार की जड़ माना जाता है वहीं वहां नये कानून बनाने पर बल देते हैं। उनको चाणक्य नीति पढ़ना चाहिए। समाज, धर्म और कानून के बारे में विचार करते समय चाणक्य जैसे महान विचारक के सिद्धांतों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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