मनुष्य को अपना कर्म करते समय अपने विवेक का ही उपयोग करना चाहिए। अपने जीवन के लक्ष्य तथा उनकी प्राप्ति के साधनों के संग्रह करने के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि वह पवित्र हों। दूसरों को हानि पहुंचाये बिना अपने व्यवसाय या नौकरी करना जीवन के सहजता और सुख दिलाने का एकमात्र उपाय है। यह सही है कि आज के भौतिकवाद युग में काले व्यवसाय और अपराध से पैसा कमाना आसान लगता है पर अंततः उसके दुष्परिणाम भोगने वालों से यह सबक लेना चाहिए कि केवल दौलतमंद होना ही पर्याप्त नहीं वरन् चरित्रवान भी हों तो बेहतर है।
मनुष्य के गुण ही उसे समाज में सम्मान दिलाते हैं। दुर्गुणी व्यक्ति को धनवान, पदवान या बाहुबली होने के कारण कोई सामने बुरा न कहे पर पीठ पीछे लोग अपनी भड़ास निकालते हैं। दुष्ट लोग अपनी छवि को लेकर भले ही भ्रम में रहें पर गुणवान अपनी प्रतिष्ठा की चिंता किये बिना अपने सत्कर्म में लिप्त रहते हैं।
इस विषय में संत कवि तुलसीदास कहते हैं कि
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मनि भाजन मधु पारई, पूरन अभी निहारि।
का छांड़िअ का संग्रहिअ, कहहु बिबेक बिचारि।।
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मनि भाजन मधु पारई, पूरन अभी निहारि।
का छांड़िअ का संग्रहिअ, कहहु बिबेक बिचारि।।
‘‘शराब और अमृत की कीमत और पहचान उसके बर्तन से नहीं वरन् गुण से है। शराब का पात्र मणि का और अमृत का पात्र मिट्टी का बना हो तो आप विवेक से विचार कर बताईये किसका त्याग करेंगे।’’
सुजन कहत भल पोच पथ, पापि न परखइ भेद।
करमनास सुरसरित मिस, बिधि निषेध बद बेद।।
करमनास सुरसरित मिस, बिधि निषेध बद बेद।।
सज्जन लोग अच्छे और बुरे काम की पहचान करने की योग्यता करते हैं जबकि दुष्ट लोग इस तरफ ध्यान नहीं देते।’’
सज्जन और सद्भाव रखने वाला व्यक्ति भले ही निर्धन हो पर लोग उसका सम्मान करते हैं जबकि दुष्ट और क्रूर व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो उसके लिये सभी के मन मे घृण होती है। समय समय पर अपने चरित्र और व्यवहार का आत्ममंथन करते हुए अपना जीवन सावधानी के साथ बिताना आज के संघर्षपूर्ण युग में बहुत आवश्यक है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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1 comment:
आभार |
अब किसका त्याग करें और किसको ग्रहण करें - यह तो चुनाव करने वाले पर है :)
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