Sunday, August 7, 2011

भारतीय वेद शास्त्रों से-वायु भी औषधि का काम करती है (ved shastra-air is a great medisin)

        वर्षा के मौसम में अक्सर अनेक प्रकार की बीमारियां फैलती हैं। इसका कारण यह है कि इस मौसम मेंएक तो मनुष्य की पाचन क्रिया इस समय अत्यंत मंद पड़ जाती है जबकि जीभ स्वादिष्ट मौसम के लिये लालायित हो उठती है। दूसरा यह है कि जल में अनेक प्रकार के विषाणु अपना निवास बना लेते हैं। इस तरह स्वाभाविक रूप से इस समय बीमारी का प्रकोप यत्र तत्र और सर्वत्र प्रकट होता है। बरसात के मौसम में जहां चिकित्सकों के द्वार पर भीड़ लगती है वहीं योग साधक अधिक सतर्कता पूर्वक प्राणायाम करने लगते हैं ताकि वह बीमारियों से बचे रहें।
            जल और वायु न केवल जीवन प्रवाह में सहायक होती है बल्कि रोगनिदान में औषधि के रूप में इनसे सहायता मिलती है। वर्षा ऋतु में दोनों का प्रवाह बाधक होता है पर नियम, समय और प्राणयाम के माध्यम से अपनी देह को उन विकारों से बचाया जा सकता है जो इस मौसम में होती है।
वेद शास्त्रों में कहा गया है कि
----------------
वात ते गृहेऽमृतस्य निधिर्हितः।
ततो नो देहि जीवसे।।
           ‘‘इस वायु के गृह में यह अमरत्व की धरोहर स्थापित है जो हमारे जीवन के लिये आवश्यक है।’’
अ त्वागमं शन्तातिभिरथे अरिष्टतातिभिः दक्षं ते भद्रमाभार्ष परा यक्ष्मं सुवामित ते।।
        ऋग्वेद की इस ऋचा अनुसार वायु देवता कहते हैं कि ‘‘हे रोगी मनुष्य! मैं वैद्य तेरे पास सुखदायक और अहिंसाकर रक्षण लेकर आया हूं। तेरे लिये कल्याणकारी बल को शुद्ध वायु के माध्यम से लाता हूँ  और तेरे रोग दूर करता हूं।’’
वातु आ वातु भेषजं शंभु मयोभु नो हृदे।
प्र ण आयूँरिर तारिषत्।।
             ‘‘याद रखें कि शुद्ध ताजी वायु अमूल्य औषधि है जो हमारे हृदय के लिये दवा के समान उपयोगी है, आनंददायक है। वह आनंद प्राप्त करने के साथ ही आयु को बढ़ाता है।
          हमने देखा होगा कि जब कोई मरीज नाजुक हालत में अस्पताल पहुंचता है तो सबसे पहले चिकित्सक उसकी नाक में आक्सीजन का प्रवाह प्रारंभ करते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि सबसे प्रथम दवा तो वायु ही होती है। इसके अलावा जो दवायें मिलती हैं उनके जल का मिश्रण होता है या फिर उनका जल से सेवन करने की राय दी जाती है। हम यहां वायु के महत्व को समझें। हमने देखा होगा जहां जहां घनी आबादी हो गयी है वहां अधिकतर लोग चिढ़चिढ़े, तनाव ग्रस्त और हताशा जनक स्थिति में दिखते हैं। अनेक लोग घनी आबादी में इसलिये रहना चाहते हैं कि उनको वहां सुरक्षा मिलेगी दूसरा यह कि अपने लोग वहीं है पर इससे जीवन का बाकी आनंद कम हो जाता है उसका आभास नहीं होता।
        श्रीमद्भागवत गीता में ‘गुणों के गुणों में ही बरतने’ और ‘इंद्रियों के इंद्रियों मे बरतने’ का जो वैज्ञानिक सिद्धांत दिया गया है उसके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जहां प्राणवायु विषाक्त है या जहां उसकी कमी है वहां के लोगों के मानसिक रूप से स्वस्थ या सामान्य रहने की अपेक्षा करना भी व्यर्थ है। आमतौर से सामान्य बातचीत में इसका आभास नहीं होता पर विशेषज्ञ इस बात को जानते हैं कि शुद्ध और अधिक वायु के प्रवाह में रहने वाले तथा इसके विपरीत वातावरण में रहने वाले लोगों की मानसिकता में अंतर होता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका 
६.अमृत सन्देश  पत्रिका

No comments:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels