श्रीमद्भागवत में श्री कृष्ण कहते हैं कि यह संसार मेरे संकल्प के आधार पर ही स्थित है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि इस संसार में समस्त देहधारियों के जीवन का स्वरूप और आधार ही ध्यान है। हमारे जीवन में अक्सर उतार चढ़ाव आते हैं। जब अच्छा समय होता है तब हमें कुछ आभास नहीं होता पर बुरा समय आता है तो उस समय विलाप करते हैं। उस समय कभी भाग्य को दोष देते हैं तो कभी दूसरे मनुष्य या स्थिति को दोष देते हैं। यह सब भ्रम है। दरअसल जिस तरह परमात्मा का संसार उसके संकल्प के आधार पर बना है वैसे ही हमारा जीवन संसार भी हमारे संकल्प का आधार है। हम कभी अपने मन में चल रहे संकल्पों का अवलोकन नहीं करते पर उससे जो संसार बन रहा है उसे भोगना तो हमें ही होता है। इन संकल्पों में सदैव शुद्धता रहे इसके लिये ध्यान करने साथ ही ज्ञानी तथा विद्वान लोगों का दर्शन कर सत्संग का लाभ उठाना चाहिए।
इस विषय में नीति विशारद चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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दर्शनध्यानसंस्पर्शे कूर्मी च पक्षिणी।
शिशुं पालयते नित्यं तथा सज्जनसंगति।।
‘मछली, कछवी और मादा पक्षी चिडिया जिस प्रकार दर्शन, ध्यान और स्पर्श से अपने शिशुओं का पालन करती हैं उसी प्रकार उत्तम पुरुष की तरफ ध्यान करने से मनुष्य को भी लाभ होता है।’’
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दर्शनध्यानसंस्पर्शे कूर्मी च पक्षिणी।
शिशुं पालयते नित्यं तथा सज्जनसंगति।।
‘मछली, कछवी और मादा पक्षी चिडिया जिस प्रकार दर्शन, ध्यान और स्पर्श से अपने शिशुओं का पालन करती हैं उसी प्रकार उत्तम पुरुष की तरफ ध्यान करने से मनुष्य को भी लाभ होता है।’’
पतंजलि योग में भी ध्यान का महत्व अत्यंत व्यापक ढंग से प्रतिपादन किया गया है। वैसे भी कहा जाता है कि हमारे धर्म की शक्ति का मुख्य बिंदु ध्यान है। श्रीमद्भागवत गीता में भी ध्यान को महत्व दिया गया है। योगासन करने के बाद किया गया ध्यान उसे पूर्णता प्रदान करता है। अनेक पशु पक्षी तो अपने ध्यान और दर्शन से ही बच्चों का पालन करते हैं। उनसे प्रेरणा लेना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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1 comment:
शिक्षाप्रद आलेख, धन्यवाद!
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