अपनी प्रकृति के अनुसार हर जीव संघर्ष कर जिंदा रहता है। संघर्ष का आशय स्वाभाविक कर्म से ही है। जब श्रीमद्भागवत गीता की बात आती है तो अक्सर लोग यह सोचते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने का उपदेश दिया है जिसका सामान्य कर्म से कोई संबंध नहीं है। यह सोच अज्ञान का प्रमाण है। दरअसल अर्जुन का उस समय स्वाभाविक कर्म ही युद्ध करना था। उन्होंने द्रोणाचार्य से युद्ध कौशल की ही शिक्षा प्राप्त की थी। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट कहा था कि ‘तू अभी अज्ञानवश विरक्त होकर युद्ध छोड़ देगा पर बाद में तेरा स्वभाव तुझे इसके लिये प्रेरित करेगा।’’
सामवेद में कहा गया है कि
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दिवे दिवे वाजं सरिनः।
‘‘प्रतिदिन युद्ध करों।’’
मो घु ब्रह्मोव तन्द्रर्भवो।
‘‘आत्म ज्ञानी होकर आलसी न होना।’’
अधा हिन्वान इंद्रिय ज्यायो महित्वमानशे।
अभिष्टकृद्विचर्षणि।
‘‘विशेष ज्ञान धारण करने वाला इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर अपना लक्ष्य प्राप्त करता है।
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दिवे दिवे वाजं सरिनः।
‘‘प्रतिदिन युद्ध करों।’’
मो घु ब्रह्मोव तन्द्रर्भवो।
‘‘आत्म ज्ञानी होकर आलसी न होना।’’
अधा हिन्वान इंद्रिय ज्यायो महित्वमानशे।
अभिष्टकृद्विचर्षणि।
‘‘विशेष ज्ञान धारण करने वाला इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर अपना लक्ष्य प्राप्त करता है।
आज के आधुनिक युग में प्राचीन इतिहास की तरह युद्ध नहीं लड़े जाते पर मनुष्य के स्वाभाविक कर्म भी अब युद्ध की तरह संपन्न करने पड़ते हैं। इसके विपरीत मनुष्य स्वभाव आलस्य की तरफ बहुत आसानी से प्रवृत्त होता है। आज नहीं कल नहीं कल नहंी परसों तक काम टालने की बात उसके दिमाग में आ ही जाती है। आलस्य की वजह से लोग अपने हाथ से ऐसा अवसर खो देते हैं जिसका लाभ उठाने से उनके जीवन का धारा बदल सकती है।
अगर हम अपने जीवनकाल के सफल लोगों की तरफ देखकर उनके कर्म का विश्लेषण करें तो यह बात सामने आयेगी कि उन्होंने अपने पास आये अवसरों का जमकर लाभ उठाया। हमें प्रतिदिन अपने कर्म के लिये ऐसे ही तैयार होना चाहिए जैसे युद्ध के लिये योद्धा तैयार होता है। अपने विषय से संबंधित हर सामग्री का अवलोकन उसें पारंगत होना चाहिए। जीवन में सफलता मूलमंत्र सतत युद्ध करना ही है। इसके लिये हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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1 comment:
सत्य बात है!! कर्म शत्रुओं से संघर्ष ही युद्ध है जिसमें सभी इन्द्रिय विषयों का निग्रह कर विजय पानी होती है। सार्थक!!
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