अनेक योग प्रचारक अपने शिष्यों को तात्कालिक दैहिक प्रभाव दिखाने वाले आसनों तथा प्राणायामों के बारे में सिखाते हैं जबकि योग विधा के आठ अंग होते हैं जिनका ज्ञान होने पर आदमी ज्ञानी हो जाता है।
इसमें कोई संशय नहीं है कि योगासन तथा प्राणायाम का बहुत महत्व है पर यह भी जरूरी है कि पतंजलि योग के मूल तत्वों का भी ज्ञान प्राप्त किया जाये। योगासन और प्राणायाम से शरीर में स्फूर्ति और स्थिरता आती है तब मानव मन कोई अच्छा विचार करना चाहता है। मन में बेहतर विषयों के अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न होती है। ऐसे में भारतीय अध्यात्म ग्रंथों का अध्ययन करना एक महत्वपूर्ण कार्य साबित हो सकता है। पतंजलि योग में वर्णित आठों भागों का ज्ञान प्राप्त होने पर हमारे अंदर योग शक्ति का निर्माण होता है। मन के उतार चढ़ाव, इंद्रियों की गतिविधियों तथा देह के अंदर चल रही प्रक्रिया को हम अपनी अंतदृष्टि से देखते हैं। इससे हमारे अंदर संसार के व्यवहार का ज्ञान आता है।
दक्षस्मृति में कहा गया है कि
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लोको वशीकृतों येन यन चात्मा वशीकृतः।
इन्द्रियार्थो जितोयने ते योग प्रब्रवीम्यहम्।।
‘‘योग से मनुष्य सारे संसार को वश में कर सकता है। बिना योग शक्ति के किसी को भी वश में करना संभव नहीं है। बिना योग के व्यवहार का भी ज्ञान नहीं होता न ही इंद्रियों की गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकता है।’’
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लोको वशीकृतों येन यन चात्मा वशीकृतः।
इन्द्रियार्थो जितोयने ते योग प्रब्रवीम्यहम्।।
‘‘योग से मनुष्य सारे संसार को वश में कर सकता है। बिना योग शक्ति के किसी को भी वश में करना संभव नहीं है। बिना योग के व्यवहार का भी ज्ञान नहीं होता न ही इंद्रियों की गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकता है।’’
सच बात तो यह है कि बोलते, सुनते, स्पर्श करते, सूंघते और देखते हुए केवल एक प्रयोक्ता की तरह हो जाते हैं। अपने अंदर के स्वामित्व का आभास तनिक भी नहीं रहता। हमारी इंद्रियां कार्यरत हैं पर उन पर हमारी नज़र नहीं रहती। हमें लगता है कि सारे काम हम कर रहे हैं पर यह भूल जाते हैं कि यह सब इंद्रियों की गतिविधियों का परिणाम है। हम इंद्रियों के प्रयोक्ता हैं पर यह अहसास नहीं होता। यही अहसास अपने स्वामित्व होने का परिचय देता है और आदमी दृष्टा की तरह हो जाता है। तब वह संसार के व्यवहार के सिद्धांतों को अच्छी तरह समझता है। इसी कारण योग साधना तथा ध्यान में हमेशा तत्पर रहना चाहिए। इससे जो ज्ञान प्राप्त होता है वह आदमी को विश्व विजयी बना सकता है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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