साहसे वर्तमानं तु यो मर्थयति पार्थिवः।
सः विनाशं व्रजत्याशु विद्वेषं चाधिगच्छति।।
हिन्दी में भावार्थ-जो राज्य प्रमुख दुस्साहस करने वाले व्यक्ति को क्षमा कर देता है वह स्वयं ही अतिशीघ्र नाश को प्राप्त होता है क्योंकि इससे राज्य की प्रजा में विद्रोह का भाव पैदा होता है।
सः विनाशं व्रजत्याशु विद्वेषं चाधिगच्छति।।
हिन्दी में भावार्थ-जो राज्य प्रमुख दुस्साहस करने वाले व्यक्ति को क्षमा कर देता है वह स्वयं ही अतिशीघ्र नाश को प्राप्त होता है क्योंकि इससे राज्य की प्रजा में विद्रोह का भाव पैदा होता है।
न मित्रकारणांद्राजा विपुलाद्वाधनायामात्।
समुत्सृजेत्साहसिकान्सर्वभूतभयावहान्।।
हिन्दी में भावार्थ-राज्य प्रमुख को चाहिए वह स्नेह अथवा लालचवश भी प्रजा में डर उत्पन्न करने वालो चोरों और अपराधियों को क्षमा न प्रदान करे।
समुत्सृजेत्साहसिकान्सर्वभूतभयावहान्।।
हिन्दी में भावार्थ-राज्य प्रमुख को चाहिए वह स्नेह अथवा लालचवश भी प्रजा में डर उत्पन्न करने वालो चोरों और अपराधियों को क्षमा न प्रदान करे।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुस्मृति का विरोध करते करते अनेक लोगों ने राजकाज में भागीदारी प्राप्त की मगर प्रजा को क्या दिया? सभी मुखौटों की तरह काम करते रहे। पूंजीपतियों और अपराध समूहों का आजकल इतना घालमेल हो गया है कि पता ही नहीं चलता कि राज्य वास्तव में उन लोगों से संचालित है जिनका चेहरा दिख रहा है या वह पुतले हैं जिनकी डोर कोई पीछे से खींच रहा है। दुस्साहस करने वाले अपराध्सियों पर हाथ डालना आसान नहीं रहा। प्रचार माध्यमों में घोटालों की चर्चा पर अगर विचार करें तो ऐसा लगता है कि राज्य का राजस्व लुट रहा है और जिम्मेदार लोग लाचार दिख रहे हैं। जो अनाज राज्य गरीबों के लिये सस्ते दामों पर बेचने के लिये भेजता है उसे राज्य के अधिकारी, कर्मचारी तथा व्यापारी मिलकर अपने कब्जे में ले लेते हैं। इधर ऐसे एक राज्य का गरीबों को बेचा जाने वा अनाज विदेशों में भेज दिया गया-इस घटना पर प्रचार माध्मयों के बहुत चर्चा है।
मनुस्मृति में केवल अपराधियों के लिये हीं कड़े दंड का प्रावधान नहीं वरन् उनकी अनदेखी करने वाले राज्य कर्मियों के लिये भी ऐसी ही व्यवस्था है। ऐसा लगता है कि राज्य कर्म से जुड़े कुछ तत्व मनुस्मृति की व्यवस्था और संदेशों से भय खाते हैं इसलिये ही निम्न जाति तथा स्त्रियों के प्रति कुछ संदेशों को लेकर दुष्प्रचार करते हैं ताकि कोई उनकी निष्कर्मता तथा लालच की वजह की जा रही लापरवाही पर लोग टिप्पणियां न करें। यही कारण है कि आज देश की व्यवस्था एकदम बुरी और दर्दनाक हो गयी है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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