Saturday, August 14, 2010

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-अभिमान से उत्पन्न विग्रह का सामपूर्वक निग्रह करें (kautilya ka arthshastra-abhiman aur samman)

अपमानातु सम्भूतं मानेन प्रशमं नयेत्।
सामपूर्व उपायो वा प्रणामो वाभिमानजे।।
हिन्दी में भावार्थ-
जब अपने अपमान से विग्रह यानि तनाव सामने आये तब सम्मान देकर उसे शांत करें और जब अभिमान से उत्पन्न हो तब सामपूर्वक उसका उपाय कर शांत करें।
कुर्यायर्थदपरित्यागमेकार्थाभिनिवेशजे।
धनापचारजाते तन्निरोधं न समाचरेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
जब एक ही प्रयोजन के कारण विग्रह या तनाव उत्तपन्न हो तब दोनों में से एक उसका त्याग करे। जब धन के कारण तनाव हो तब उसकी उपेक्षा करें तो शांति हो जाती है।
भूतनुग्रहविच्छेदजाते तत्र वदेत्प्रियम्।
दवमेव तु देवोत्थे  शमनं साधुसम्मतम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
जब अन्य प्राणियों से वाणी के द्वारा तनाव या विग्रह उत्पन्न तो उसे प्रियवचन बोलकर शांत करें।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में अनेक प्रकार के तनाव या विग्रह के क्षण आते हैं। उस समय ज्ञानी लोग उसके उत्पन्न होने का कारण जानकर उसका निग्रह करते हैं। जिन लोगों को ज्ञान नहीं है वह अभिमान वश उसी कारण को अधिक बढ़ाते हैं जिसके कारण तनाव या विग्रह उत्पन्न हुआ है। अगर कोई व्यक्ति हमारे बोलने से नाराज हुआ है तो उसकी उपेक्षा कर हम उसे अधिक बढ़ाते हैं। उस समय ऐसा लगता है कि हमसे अपमानित व्यक्ति हमारा क्या कर लेगा मगर इस बात को भूल जाते हैं कि अहंकार हर मनुष्य में है और समय आने पर हर कोई अपने अपमान का बदला लेने को तत्पर होता है। एक बात दूसरी भी है कि हम अपने व्यवहार से अपने शत्रु बनाते हैं तो स्वयं भी आराम से नहीं बैठ पाते।
अतः जहां तक हो सके अन्य लोगों से वैमनस्य या तनाव का भाव समाप्त कर देना चाहिये। ऐसा भी होता है कि एक ही समय में दो लोग किसी लक्ष्य या व्यक्ति के लिये प्रयत्नशील हो जाते हैं इससे दोनों में वाद विवाद होता है। ज्ञानी मनुष्य अपना लक्ष्य छोड़कर दूसरा तय कर लेते हैं। बजाय किसी से विवाद के अच्छा है कि अपना ही मार्ग बदल लें। मन शांत करने के लिये ऐसे आवश्यक उपाय करते रहना चाहिये ताकि समय समय पर आने वाले तनाव क्षणिक साबित हों।
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