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रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून
आशय यह है पानी को बचा कर रखें क्योंकि पानी बिना सब सून। पानी अगर न रहा तो मोती, मनुष्य और अनाज किसी का उद्धार नहीं हो सकता है।
वर्तमान संदर्भ में सम्पादकीय व्याख्या-जिनके पास पानी की अभाव है वह तड़प रहे हैं पर जिनके पास है वह भी फैलाने में लगे हैं। अपनी कारों और मोटर साइकिलों को ऐसे ही रोज नहलाते हैं जैसे कि वह गाय या बैल हों। लोग पानी को ऐसे फैलाये जा रहे हैं जैसे कभी खत्म नहीं होगा। यह आश्चर्य की बात है कि आज कई जगह जल बचाने के लिऐ आंदोलन चल रहे हैं।
जबकि रहीम जी का यह दोहा तो सैंकड़ों बरसों से इस देश में प्रचलित है और लोग इसे अक्सर अपना ज्ञान बघारने के लिये सुनाते हैं। सच बात तो यह है कि ज्ञान सुनना अलग बात है और उसे धारण करना अलग बात है। इस देश में संत हो या आम आदमी सभी लोग ज्ञान और ध्यान की किताबें पढ़-पढ़कर उसका लिखा एक दूसरे को सुनाते हैं पर धारण कोई नहीं करता। अगर धारण करने वाले लोग होते तो आज इस तरह पानी के लिये बेहाल नहीं होते। समस्या यह नहीं है कि जल की कमी है बल्कि बढ़ते शहरीकरण के कारण उसके स्त्रोतों में कमी आयी है पर उपयोगिता की मात्रा बढ़ गयी है। आजकल कूलरों में पानी डालने के अलावा अपने वाहनों को साफ करने पर भी उसका अपव्यय होता है। ऐसे में इतना तो हो ही सकता है कि गर्मियों में लोग पानी फैलाने का काम न करें पर शायद ही कोई यह बात माने।
एक बात ध्यान रखें के पश्चिमी भू वैज्ञानिक मानते हैं कि भारत में भू जल स्तर अन्य देशों से बहुत अच्छा है। इसे भगवान की कृपा ही समझना चाहिए और इसका उपयोग प्रसाद की तरह थोडा करें। आजकल जल बचाना भी एक दान पुण्य का काम समझना चाहिए।
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संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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1 comment:
रहीम और उनके दोहे तो ....क्या कहे ///कुछ आपके लिए यहाँ भी है...सुझाव दे http://athaah.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html
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