भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
----------------------------------
दुरारध्याश्चामी तुरचलचित्ताः क्षितिभुजो वयं
तु स्थूलेच्छाः सुमहति बद्धमनसः।
तु स्थूलेच्छाः सुमहति बद्धमनसः।
जरा देहं मृत्युरति दयितं जीवितमिदं
सखे नानयच्छ्रेयो जगति विदुषेऽन्यत्र तपसः।।
सखे नानयच्छ्रेयो जगति विदुषेऽन्यत्र तपसः।।
हिंदी में भावार्थ-
जिन राजाओं का मन घोड़े की तरह
दौड़ता है उनको कोई कब तक प्रसन्न रख सकता है? हमारी अभिलाषाओं और आकांक्षाओं की तो कोई सीमा ही नहीं है। सभी के मन में अधिक धन, बड़ा पद तथा
प्रतिष्ठत छवि पाने की लालसा स्वाभाविक रूप
से होती है। इधर शरीर बुढ़ापे की तरह बढ़
रहा होता है। मृत्यु
पीछे पड़ी हुई होती है। इन सभी को देखते
हुए तो यही कहा जा सकता है कि भक्ति और तप के अलावा को अन्य मार्ग ऐसा नहीं है जो
हमारा कल्याण कर सके।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों के मन में धन पाने की लालसा बहुत होती है और
इसलिये वह धनिकों, उच्च पदस्थ एवं बाहुबली लोगों की और आशा भरी दृष्टि स ताकते
हुए उनकी चमचागिरी करने के लिये तैयार रहते हैं। उनकी चाटुकारिता में
कोई कमी नहीं करते। चाटुकार लोगों को
यह आशा रहती है कि कथित ऊंचा आदमी उन पर रहम कर उनका कल्याण करेगा। यह केवल भ्रम है। जिनके
पास वैभव है उनका मन भी हमारी तरह चंचल होता है और वह अपना काम निकालकर भूल जाते हैं या अगर कुछ देते हैं
तो केवल चाटुकारिता के
कारण नहीं
बल्कि कोई सेवा करा कर। वह भी जो प्रतिफल देते हैं तो वह भी न के बराबर। इस संसार में
बहुत कम ऐसे लोग हैं जो धन, पद
और प्रतिष्ठा प्राप्त कर उसके मद में डूबने से बच पाते हैं। अधिकतर लोग तो अपनी शक्ति के अहंकार में अपने से छोटे आदमी
को कीड़े मकौड़े जैसा समझने लगते हैं और उनकी चमचागिरी करने पर भी कोई लाभ नहीं होता।
अगर ऐसे लोगों की निंरतर सेवा की जाये तो भी सामान्य से
कम प्रतिफल मिलता है।
सच तो यह है कि आदमी का जीवन इसी तरह गुलामी करते
हुए व्यर्थ चला जाता हैं। जो धनी है वह अहंकार में है और जो गरीब है वह केवल
बड़े लोगों की ओर ताकता हुआ जीवन गुंजारता है। जिन लोगों का इस बात का ज्ञान
है वह भक्ति और तप के पथ पर चलते हैं क्योंकि वही कल्याण का मार्ग है।इस
संसार में प्रसन्नता से जीने का एक ही उपाय है कि अपने स्वाभिमान की रक्षा
करते हुए ही जीवन भर चलते रहें। अपने
से बड़े आदमी की चाटुकारिता से लाभ की आशा करना अपने लिये निराशा पैदा करना है।
--------------------------------संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://anant-shabd.blogspot.com
------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
1 comment:
बहुत बढ़िया.
आभार
Post a Comment