मनु स्मृति में में कहा गया है कि
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यद्ध्यायति यत्कुरुते धृतिं बध्नाति यत्र च।
तद्वाघ्नोत्ययत्नेन यो हिनस्तिन किंचन।।
तद्वाघ्नोत्ययत्नेन यो हिनस्तिन किंचन।।
हिंदी में भावार्थ-जो मनुष्य किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करता, वह जिस विषय पर एकाग्रता के साथ विचार और कर्म करता है अपना लक्ष्य शीघ्र और बिना
विशेष प्रयत्न के प्राप्त कर
लेता है।
नाऽकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्यद्यते क्वचित्।
न च प्राणिवधः स्वग्र्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत्।।
न च प्राणिवधः स्वग्र्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत्।।
हिंदी में भावार्थ-किसी भी जीव की हत्या कर ही मांस प्राप्त किया जाता है
लेकिन उससे स्वर्ग नहीं मिल सकता इसलिये सुख तथा स्वर्ग को प्राप्त करने की
इच्छा करने वालो को मांस के उपभोग का त्याग कर देना चाहिये।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-इस संसार में मनुष्य के चलने के दो ही मार्ग हैं-एक
सत्य परमार्थ और दूसरा असत्य हिंसा। यदि मनुष्य का मन लोभ,
लालच और अहंकार से ग्रस्त हो गया तो वह नकारात्मक मार्ग
पर चलेगा और उसमें सहृदयता का भाव है तो वह सकारात्मक मार्ग पर चलता है। श्रीगीता के संदेशों का
सार यह है कि जैसा मनुष्य अन्न जल ग्रहण करता है तो वैसा ही उसका स्वभाव हो जाता है तब वह
उसी के
अनुसार ही कर्म करता हुआ फल भोगता है।
वैसे पश्चिम के वैज्ञानिक
भी अपने अनुसंधान से यह बात प्रमाणित कर चुके हैं कि शाकाहारी भोजन
और मांसाहारी भोजन करने वालों के स्वभाव में अंतर होता है। वह यह
भी प्रमाणित
कर चुके हैं कि शाकाहारी भोजन करने वालों के विचार और चिंतन में सकारात्मक
पक्ष अधिक रहता है जबकि मांसाहारी लोगों का स्वभाव इसके विपरीत होता
है। जहा माँसाहारी उग्र होते हैं वहीँ शाकाहारी शांत स्वाभाव के पाए जाते हैं| अतः
जितना संभव हो सके भोजन में मांसाहार से परहेज करना चाहिये।यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
सही कहा है - अहिंसा परमो धर्मः
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