माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पड़ंत
कह कबीर गुरु ग्यान तैं, एक आध उमरन्त
इसका आशय यह है कि मनुष्य एक पंतगे की तरह माया रूपी दीपक के प्रति आकर्षण में भ्रमित रहता है। वह अपना जीवन उसी के इर्द गिर्द चक्कर काटते हुए नष्ट कर देता है। कोई एकाध मनुष्य ही है जिसे योग्य गुरु का सानिध्य मिलता है और वह इस माया के भ्रम से बच पाता है।
गयान प्रकास्या गुरु मिल्या, से जिनि बीसरि जाई
जब गोबिन्द कृपा करी, तब गुरु मिलिया आई
इसका आशय यह है कि जब सच्चे गुरु का सानिध्य मिलता है तो हृदय में ज्ञान का प्रकाश फैल जाता है। ऐसे गुरु को कभी नहीं भूलना चाहिये। जब भगवान की कृपा होती है तभी सच्चे गुरु मिल पाते हैं।
वर्तमान समय में संपादकीय व्याख्या-यह सब जानते हैं कि यह देह और संसार एक मिथ्या है। खासतौर से अपने देश में तो हर आदमी एक दार्शनिक है। हमारे महापुरुषों ने अपनी तपस्या से तत्व ज्ञान के रहस्य को जानकर उससे सभी को अवगत करा दिया है।
इसके बावजूद हम लोग सर्वाधिक भ्रम का शिकार हैं। आज पूरा विश्व भारतीय बाजार की तरफ देख रहा है क्योंकि उससे अपने उत्पाद यहीं बिकने की संभावना दिखती है। अनेक तरह के जीवन की विलासिता से जुड़े साधनों के साथ लोग सुरक्षा की खातिर हथियारों के संग्रह में भी लगे हैंं। एक से बढ़कर एक चलने के लिये वाहन चाहिये तो साथ ही अपनी सुरक्षा के लिये रिवाल्वर भी चाहिये। इतना बड़ा भ्रमित लोग शायद ही किसी अन्य देश में हांे।
विश्व में भारत को अध्यात्म गुरु माना जाता है पर जैसे जैसे लोगों के पास धन की मात्रा बढ़ रही है वैसे उनकी मति भी भ्रष्ट हो रही है। कार आ गयी तो शराब पीकर उसका मजा उठाते हुए कितने लोगों ने सड़क पर मौत बिछा दी। कितने लोगों ने कर्जे में डूबकर अपनी जान दे दी। प्रतिदिन ऐसी घटनाओं का बढ़ना इस बात का प्रमाण है कि माया का भ्रमजाल बढ़ रहा है। धन, पद या शारीरिक शक्ति के अंधे घोड़े पर सवार लोग दौड़े जा रहे हैं। किसी से बात शुरू करो तो वह मोबाइल या गाडि़यों के माडलों पर ही बात करता है। कहीं सत्संग में जाओ तो वहां भी लोग मोबाइल से चिपके हुए है। इस मायाजाल से लोगों की मुक्ति कैसे संभव हैं क्योंकि उनके गुरु भी ऐसे ही हैं।
सच तो यह है कि भक्ति के बिना जीवन में मस्ती नहीं हो सकती। भौतिक साधनों का उपयोग बुरी बात नहीं है पर उनको अपने जीवन का आधार मानना मूर्खता है। एक समय ऐसा आता है जब उनके प्रति विरक्ति का भाव आता है तब कहीं अन्यत्र मन नहीं लग पाता। ऐसे में अगर भजन और भक्ति का अभ्यास न हो तो फिर तनाव बढ़ जाता है। यहां यह बात याद रखने लायक है कि भक्ति और भजन का अभ्यास युवावस्था में नहीं हुआ तो बुढ़ापे में तो बिल्कुल नहीं होता। उस समय लोग जबरन दिल लगाने का प्रयास करते हैं पर लगता नहीं हैं। इसलिये युवावस्था से अपने अंदर भक्ति के बीज अंकुरित कर लेना चाहिये। अगर योग्य गुरु न मिले तो स्वाध्याय भी इसमें सहायक होता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
3 comments:
Bahut achchha karya! kripya padharen, http://hindikechirag.blogspot.com
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पड़ंत
कह कबीर गुरु ग्यान तैं, एक आध उमरन्त
" bhut shee or sach kha hai..."
regards
आपकी व्याख्या का एक-एक शब्द सही है ।
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