Wednesday, February 27, 2008

रहीम के दोहे:अधर्म का धन जल्दी नष्ट होता है

रहिमन वित्त अधर्म को, जरत न लागै बार

चोरी करि होरी रचि, भई तनिक में छार

कविवर रहीम कहते हैं की पाप के धन को नष्ट होने में समय नहीं लगता। जैसे चोरी करके होली उत्सव के लिए लकडी जुटाई जाती है और वह पल भर में राख हो जाती है।

रहिमन वे नर मार चुके, जे कहूँ मांगन जाहिं

उनते पाहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं

कविवर रहीम कहते हैं किवह लोग मृतक समान है जो कहीं मांगने जाते हैं पर उनसे पहले तो मृतक वह हैं जो मांगने पर मना कर देते हैं।

3 comments:

mamta said...

ठीक है।
पर आज के ज़माने मे तो सब उल्टा-पुल्टा ही होता है।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही दोहे प्रेषित किए हैं।

Anita kumar said...

वाह और सुनाइए

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