१.जो मनुष्य जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी वैसा भी वैसा ही करना चाहिए-यही नीति धर्म है। कपट का आचरण करने वाले के साथ कपटपूर्ण बर्ताव करें और सद्व्यवहार करने वाले के साथ साधुता का बर्ताब करें।
२.बुढापा रूप का, आशा धैर्य का, मृत्यु प्राणों का, असूया धर्माचरण का, काम लज्जा का, नीचता पूर्ण कर्म सदाचार का, क्रोध लक्ष्मी का और अंहकार सर्वस्व का ही नाश कर देता है।
३.अत्यंत अभिमान, अधिक बोलना, त्याग के भाव का न होना, अपना ही पेट पालने के प्रवृति और मित्र के साथ विश्वासघात-यह छ: तीखी तलवारे देहधारियों की आयु को काटती हैं। यह मनुष्य का वध करती हैं न की मृत्यु प्रदान करती हैं।
४.आपत्ति के लिए धन की रक्षा करें, धन के द्वारा भी स्त्री की रक्षा करें और स्त्री और धन दोनों के द्वारा सदा अपनी रक्षा करें।
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