दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूदि चढिं
कविवर रहीम कहते हैं की जैसे खेल दिखाते हुए नत कूद-कूदकर अपने आपको सावधानी से संभालता हुआ शीघ्रता से ऊपर की नोंक पर कूद-कूदकर अपने आपको सावधानी से संभालता हुआ शीघ्रता से ऊपर बांस की नोंक पर कुंडली मारकर चढ़ जाता है, उसी प्रकार रहीम के दोहों में शब्द तो कम हैं परन्तु अर्थ बहुत गहरा है.
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
1 comment:
sahi hai kaam akshar mein jyada gehri baat
http://mehhekk.wordpress.com/
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