Saturday, January 19, 2008

संत कबीर वाणी:माया के होते हैं नौ-नौ लंबे हाथ सींग

देखा देखी भक्ति का, कबहूँ न चढ़सी रंग
<विपत्ति पडे यों छाड्सी, केचुली तजत भुजंग

देखा-देखी की हुई भक्ति का रंग कभी भी आदमी पर नहीं चढ़ता और कभी उसके मन में स्थायी भाव नहीं बन पाता। जैसे ही कोई संकट या बाधा उत्पन्न होती है आदमी अपनी उस दिखावटी भक्ति को छोड़ देता है। वैसे ही जैसे समय आने पर सांप अपने शरीर से केंचुली का त्याग कर देता है।


कोटि करम लगे रहै, एक क्रोध की लार
किया कराया सब गया, जब आया हँकार


रेशम के कीडे द्वारा जैसे अत्यंत लंबा रेशम का धागा बँटा जाता है, उसी प्रकार एक क्रोध ही करोडों पाप कर्मों को उत्पन्न करता है। जब मनुष्य को अंहकार आ जाता है तो उसके पुण्य, तप, ज्ञान, गुण आदि सभी नष्ट हो जाते हैं।

माया माथै सींगड़ा, लम्बे नौ-नौ हाथ
आगे भारे सींगड़ा, पाछै मारै लात


माया के माथे पर मद और अंहकार रुपी, लोभ और अज्ञान रूपी सींग होते हैं जो नौ-नौ हाथ लम्बे होते हैं। आते समय वह सींग मारती और जाते समय लात मारती है।

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