प्रेम पियाला सो पियो, शीश दच्छिना देय
लोभी शीश न दे सकै, नाम प्रेम का लेय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम का प्याला वही प्रेमी पी सकता है जो अपना सिर दक्षिणा दे सकता है और जो भगवान का नाम केवल दिखाने के लिए लेता है वह लोभी कभी भी प्रेम नहीं कर सकता।
भावार्थ-यहाँ कबीरदास जी का अपना सिर दक्षिणा में दिने से आशय निष्काम भक्ति से है। हमारे दिमाग में भक्ति के समय भी अनेक बाते भरी होतीं है और अगर उन चिंताओं का बोझ सिर से उतार कर भक्ति में लीन हुआ जाये तभी सच्ची भक्ति प्राप्त हो सकती है।
कथन थोथी जगत में, करनी उत्तम सार
कह कबीर करनी भली, उतरै भौजल पार
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि अपने मुहँ से बातें करना बहुत आसन होता है परन्तु करना मुश्किल है। वास्तविकता यह है कि जब कोई अच्छा काम करेंगे, तभी इस जीवन रुपी भवसागर से पार हो सकेंगे।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
-
*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
No comments:
Post a Comment