Thursday, January 17, 2013

जो सुनना नहीं चाहता उसे ज्ञान देना बेकार-हिन्दू धार्मिक चिंत्तन

              हमारे देश में कहीं भी चले जायें जहां चार लोग मिल बैठेंगे वहां अपने अध्यात्म ज्ञान का बखान जरूर करेंगे। अगर हम इन चर्चाओं को देखें तो लगेगा कि इस देश में भ्रष्टाचार, बेकारी, भुखमरी जैसी समस्याओं के साथ ही समाज को नष्ट करने वाली पुरानी रूढ़िवादिता का अस्तित्व दिखना ही नहीं चाहिए। ऐसा हो नहीं रहा है। यहां तक कि पाश्चात्य शिक्षा पद्धति का अनुसरण भी इसलिये किया गया ताकि हमारा समाज विश्व के अन्य देशों की बराबर कर सके। हो इसका उल्टा रहा है। पाश्चात्य प्रणाली पर आधारित शिक्षा में नैतिक ज्ञान का अभाव है और इस कारण अधिक शिक्षित आदमी एक तरह से न तो घर का रह जाता है न घाट का! इसके विपरीत अशिक्षित तथा अल्प शिक्षित कम से कम अपने अध्यात्म दर्शन से तो जुड़े रहने का पाखंड तो कर ही लेते हैं। जहां तक ज्ञान और उसके अनुसरण का प्रश्न है तो समाज की स्थिति देखकर नहीं लगता कि हमारा नैतिक स्तर कोई ऊंचा है। भ्रष्टाचार के विषय में हमारा देश अग्रणी देशों में गिना जाता है।
                       विदुर नीति में कहा गया है कि
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                     असभ्यगपयुक्तं हि ज्ञानं सुकुशलैरपि।
                    उपलभ्यं चाविदितं विदितं चाननुष्ठिम्।।
             ‘‘विद्वान चाहे कितना भी प्रतिष्ठित क्यों न हो यदि उससे कर्तव्य का ज्ञान नहीं हुआ अथवा उस ज्ञान से उचित अनुष्ठान नहीं हुआ तो वह व्यर्थ ही है।
              नष्टं समुद्रे पतितं नष्टं वाक्यमश्रृ्ण्वति।
              अनामास्मनि श्रृतं नष्ट नष्ट हुतमनाग्निकम्।।
           ‘‘समुद्र में गिरी हुई कोई भी वस्तु नष्ट हो जाती है उसी तरह जो सुनता नहीं है उससे कही हुई बात भी नष्ट हो जाती है। अजितेंद्रिय पुरुष का शास्त्र ज्ञान और राख में किया हुआ हवन भी नष्ट हो जाता है।
           अगर एक राष्ट्र के रूप में चिंत्तन करें तो भले ही विश्व में हमारे देश को अध्यात्मिक गुरु माना जाता है पर जिस ज्ञान के आधार पर यह छवि बनी है उसके अनुरूप हमारे अनुष्ठान नहीं है। देश में जगह जगह धार्मिक कार्यक्रम और प्रवचन होते हैं। वहां आने वाले असंख्य लोगों को देखें तो पूरा देश ही धर्ममय लगता है पर जब अखबार या टीवी चैनल देखते हैं तो लगता है कि इतना अधर्म शायद ही विश्व में कहीं अन्यत्र होता हो। अपने अध्यात्मिक ज्ञान पर गर्व करने वाले अनेक महानुभाव मिल जायेंगे पर उसका अनुसरण करने वालों की संख्या नगण्य है। एक तरह से हम अपने महापुरुषों से प्राप्त ज्ञान को नष्ट करने में लगे हैं। सच बात तो यह है कि जब तक हमारा नैतिक और अध्यात्मिक स्तर नीचे हैं हमारे यज्ञ, हवन तथा अन्य धार्मिक कर्मकांड व्यर्थ है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Friday, January 4, 2013

अथर्ववेद से सन्देश- ॐ (ओम) शब्द अत्यंत मूल्यवान (om word as a gold, om shabd swarn ke saman-message of atharvaved se sandesh)


        श्रीमद्भागवत गीता में ओम (ॐ ) शब्द को परमात्मा का पर्याय माना गया है। अनेक ऋषियों, मुनियों और संतों ने माना है कि ओम शब्द का निरंतर वाणी और मन से उच्चारण करने पर हृदय में पवित्र विचार आते हैं।  बुद्धि और मन शुद्ध होकर सकारात्मक कार्यों के लिये प्रवृत्त होता हैं।  ओम शब्द के वाणी से उच्चारण करने पर शरीर के सारे अंगों पर ऐसा प्रभाव होता है कि अंतर्मन में अद्भुत प्रकाश दीप प्रज्जवलित हो उठता है। उनके विचार तथा व्यवहार में यह प्रकाश विसर्जित दूसरे लोगों को भी प्रसन्नता देता हैं जिन लोगों को संस्कृत के श्लोक मन ही मन दोहराने में परेशानी होती है वह चाहें तो केवल ओम शब्द का जाप करें।
अथर्ववेद में कहा गया है कि
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त्रयः सुपर्णास्त्रिवृता यदायत्रेकाक्षस्मभि-संभूय शका शका।
प्रत्यौहन्मृत्युमृतेन सत्कमन्तर्दधान्त दुरितानी विश्वा।।
        हिन्दी में भावार्थ-जब समर्थ तीन सुवर्ण तिहरे होकर एक अक्षर में सब प्रकार मिल रहे हैं। वे अमृत के साथ सब अनिष्टों को मिटाकर मृत्यु को दूर करते हैं।
     योगासन के दौरान या बाद में ओम शब्द का उच्चारण करने से शरीर में एक अद्भुत रोमांच का अनुभव होता है। ओम शब्द के उच्चारण से वाणी, विचार और व्यवहार में जो स्वर्णिम परिवर्तन आता है उसकी अनुभूति इसका नियमित जाप करने पर ही पता चल सकती है। प्रयोगों से यह बात सिद्ध हो जाती है कि ओम शब्द का निरंतर जाप करने वालों के अंदर गुणात्मक रूप से परिवर्तन आते हैं जो उसके जीवन को उज्जवल पक्ष की तरफ ले जाते हैं।  यह प्रमाण विदेशी अनुसंधानकर्ताओं ने ही प्रस्तुत किया है।  अतः जिन लोगों को अपने जीवन, विचार तथा व्यवहार को प्रकाशमय बनाना है उन्हें ओम शब्द का दीपक अपने मन में स्थापित करना चाहिए। जब हम नियनित  रूप से ॐ  शब्द का जाप करेंग तब निश्चित रूप से दिव्यानुभूति होंगी।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

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