फरजी साह न हुइ सकै, गति टेढ़ी तासीर।।
कविवर रहीम कहते हैं कि शतरंज के खेल में सीधी चाल चलते हुए प्यादा वजीर बन जाता है पर टेढ़ी चाल के कारण घोड़े को यह सम्मान नहीं मिलता।
रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
हम तन ढारत ढेकुली, संचित अपनी खेत।
कविवर रहीम कहते हैं कि उस स्थान पर बिल्कुल न जायें जहां कपट होने की संभावना हो। कपटी आदमी हमारे शरीर के खून को पानी की तरह चूस कर अपना खेत जोतता है/अपना स्वार्थ सिद्ध करता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य कपट से चाहे जितनी भी भौतिक उपलब्धि प्राप्त कर ले पर समाज में उसका सम्मान बिल्कुल नहीं होता। डर और लालच के के मारे लोग दिखावे का सम्मान देते हैं पर दिल में तो सभी गालियां बकते हैं। हम देख सकते हैं कि कई वर्षों से अनेक ऐसे लोग हमारी आखों में चमक रहे हैं या चमकाये जा रहे हैं जो किसी भी दृष्टि से सज्जन नहीं है पर उनके पास ढेर सारी भौतिक उपलब्धियां हैं। उनको भगवान का अवतार या महापुरुष कहकर प्रचारित किया जाता है जबकि समाज के लोग उनको वक्र दृष्टि से देखते हैं। यह अलग बात है कि सामने कोई नहीं कहता। इधर आजकल के विज्ञापन युग में तो पैसा देकर लोग अपना नाम सभी प्रकाशित करवा रहे हैं। इससे यह भ्रम हो जाता है कि झूठ और अयोग्यता पुज रही है। सच बात तो यह है कि जिस व्यक्ति का अपने न रहने या पीठ पीछे भी सम्मान होता है वही सच्चा कहा जा सकता है। अनेक कथित महापुरुष मर गये पर अब उनका कोई नाम भी नहीं लेता। कई जग तो उनको गालियां पड़ती हैं पर ऐसे भी लोग हैं जो अल्प धनिक होने के बावजूद सज्जन थे उनको समाज आज भी याद करता है। इसलिये कपट के द्वारा भौतिक सफलता प्राप्त करने को विचार छोड़ते हुए किसी कपटी मनुष्य के पास जाना भी नहीं चाहिये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
very noble endeavour to revive the ancient wisdom .
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