Wednesday, September 16, 2009

चाणक्य नीति-कोल्हू में कुचले जाने पर भी ईख मिठास नहीं छोड़ती (chankya niti-kolhu aur eekh)

छिन्नोऽपि चन्दनतरुनं जहाति गन्धं।
वृद्धोऽपि वारणपतिर्न जहाति लीलाम्।
यन्त्रार्पितो मधुरतां न जहाति चेक्षुः
क्षीणोऽपि न त्यजति शीलगुणान् कुलीनः।।
हिंदी में भावार्थ-
कट जाने पर चंदन का वृक्ष अपनी सुंगध नहीं छोड़ता। बूढ़ा हो जाने पर भी हाथी विलसिता से विरक्त नहीं होता और ईख कोल्हू में पेरे जाने पर भी अपनी मिठास नहीं छोड़ती उसी प्रकार गुणवान और कुलीन मनुष्य दरिद्र हो जाने पर दया तथा अन्य गुणों को नहीं छोड़ता।
हिंदी में भावार्थ-मनुष्य को अपने चरित्र पर दृढ़ होना चाहिये और वही उसके गुणवान होने का प्रमाण है। जीवन में अपने कार्य के प्रति हमेशा उत्साहित रहकर ही कोई सफलता प्राप्त की जा सकती है। धन संपदा तो चंचल लक्ष्मी की प्रतीक हैं जो कभी इस घर जाती तो कभी उस घर। जिसके पास धन है वह अपने अंदर ढेर सारे गुण होने का बखान करता है। लोग भी यह मानते हैं कि जिसके पास धन है वह बड़ा आदमी ज्ञानी और गुणवान है। आजकल तो धन संपदा होना ही कुलीन होने का प्रतीक हो गयी है। जिसके पास धन है वह साहसी, ज्ञानी, और शक्तिशाली होने का प्रदर्शन करते हैं पर जैसे ही उनके पास से धन चला जाता है वह टूट जाते हैं। लोग धन संचय के प्रति इतना आकर्षित होते हैं अन्य गुणों के संचय पर उनका ध्यान ही नहीं जाता। आम तौर से सभी यही समझते हैं कि धन आने से समाज में उनको कुलीन, दयालु और ज्ञानी मान लिया जायेगा। मगर यह सच यह है कि गुणों की पहचान तो विपत्ति में ही होती है। जो कुलीन और गुणवान हैं वह दरिद्रता आने पर भी तनाव रहित होते अपनी दया, बौद्धिक कुशाग्रता और मधुरवाणी का त्याग नहीं करते और समाज के सामने यह एक आदर्श होता है।
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