तत्तेजस्वी पुरुषः परकृत निकृतिं कथं सहते।।
हिंदी में भावार्थ- जब जड़ सूर्यकांतिमणि भी सूर्य की तीव्र किरणों में जल जाती हैं तो तेजस्वी ज्ञानी पुरुष-जो चेतन होता है-भला कैसे किसी के अपमान को सहकर चुप बैठ सकता है?
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-यह अजीब बात है कि जब कहीं किसी मूर्ख और विद्वान में विवाद होता है तो विद्वान जब उसका प्रतिकार क्रोध में करता है तो बीच बचाव करने वाले कहते हैं कि ‘आप तो ज्ञानी हो क्रोध क्यों करते हो?’
अनेक बार ऐसे अवसर हमारे सामने आते हैं जब हम देखते हैं कि तमाम तरह के ज्ञान और अध्यात्म की पूंजी से संपन्न विद्वान अपने ऊपर हुए अपमानजनक शब्दाक्रमण का प्रतिकार करते हैं तब सामान्य लोग उनका उपहास उड़ाते हैं कि ‘देखो कितना ज्ञानी बनता है’। दरअसल यह उनकी अज्ञानता का ही प्रमाण है। सच बात तो यह है कि सामान्य लोग मूर्ख से डरते हैं इसलिये उसे समझाने या धमकाने की बजाय विद्वान, संतों और सहज जीवन व्यतीत करने वाले लोगों का मजाक उड़ाते हैं।
अज्ञानियों, मूर्खों, धनवानों और बाहूबलियों से डरकर उनके आगे सिर झुकाने वाले लोगों के लिये तेजस्वी विद्वान लोगों का मजाक उड़ाना आसान है। लोग यही करते हैं पर भर्तृहरि महाराज कहते हैं कि जब जड़ पदार्थ सूर्य की किरणों से जल जाता है तो तेजस्वी और ज्ञानी आदमी भला कैसे अपना अपमान सह सकता है।
वैसे क्रोध करना अच्छी बात नहीं है पर चाणक्य कहते हैं कि ‘अवसर आये तो सांप की तरह फुफकारो अवश्य’। सभी संाप जहरीले नहीं होते पर अपने ऊपर आक्रमण होने पर फुफकारते हैं। इसलिये अगर तेजस्वी और ज्ञानी व्यक्ति अपने ऊपर आक्रमण होने पर जब उसका क्रोध में प्रतिकार करते हैं तो उस आक्षेप करना अनुचित हैं। यहां यह भी याद रखने वाली बात है कि ज्ञानियों का क्रोध उनको नहीं जलाता क्योंकि वह उसे अपने अंदर अधिक देर ठहरने नहीं देते। इसक अलावा क्रोध करने के बाद वह क्षमा भी प्रदान करते हैं जबकि सामान्य आदमी के लिये यह कठिन होता है। इसलिये तेजस्वी और ज्ञानियों के क्रोध पर उन्हें उनके ज्ञान का वास्ता नहीं दिया जाना चाहिये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
आज इसी विषय पर एक मित्र से बात हो रही थी। जाने क्यों लोग समझते हैं कि पढ़े-लिखे लोग कमजोर होते हैं। विद्वानों को भी समय आने पर तलवार चलानी पड़ सकती है!
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