ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत
कविवर रहीम कहते हैं कि बांसी की धुन पर प्रसन्न होकर मृग अपना शरीर शिकारी को सौंप देता है उसी तरह मनुष्य भी दूसरे को धन देकर हित करता है। वह आदमी पशु के समान है जो प्रसन्नता प्राप्त होने पर भी किसी को कुछ नहीं देता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या -अधिकतर लोगों की प्रवृत्ति होती है मु्फ्त मेंं काम कराना। अनेक बड़े और धनी लोग अपनी शक्ति दिखाने के लिये छोटे और गरीब से से मु्फ्त में काम कराकर अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करते हैं। एक तरह से अपने बड़प्पन के आतंक तले कुछ लोग दूसरों का सामान और श्रम मुफ्त में लेना चाहते हैं। यह पशुत का प्रमाण है। अगर कोई व्यक्ति हमें थोड़ी भी प्रसन्नता प्रदान करता है तो उसे धन के रूप में कुछ न कुछ देना चाहिये। अगर उसे धन देना उचित न लगे तो उसके हित का कोई काम करना चाहिये जिससे उसे प्रसन्नता प्राप्त हो।
कई बार देखा गया है कि लोग अपनी डींगें हांकने के लिये यह बताते हैं कि अमुक वस्तु उसे मुफ्त में प्राप्त हुई या अमुक आदमी से मैंने यह काम मुफ्त में प्राप्त कर दिया। मुफ्त में काम कराने पर अपने गुणों या शक्ति का यह प्रदर्शन स्वयं को धोखा देने के लिये है। यह सोचना चाहिये कि अगर हमने किसी से कोई वस्तु ली या काम करवाया और उसे पैसा नहीं दिया तो उस आदमी के मन में क्या बात आयी होगी? यकीनन निराशा का भाव पैदा हुआ होगा। यह विचार भी करना चाहिये कि जब हम किसी को प्रसन्न करने वाले काम करते हैं और वह हमें कुछ नहीं देता तो उसके प्रति हमारे मन में कोई अच्छे भाव नहीं रहते।
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