खीरा सिर तें काटिए, मलियत नमक बनाय
रहिमन करुए मुखन को , चाहिअत इहै सजाय
कविवर रहीम कहते हैं कि जिस तरह खीरे का मुख काटकर उस पर नमक घिसा जाता है तभी वह खाने में स्वाद देता है वैसे ही मूर्खों को अपनी करनी की सजा देना चाहिऐ ताकि वह अनुकूल व्यवहार करें।
नये संदर्भ में व्याख्या-यह सही है कि बडों को छोटों के अपराध क्षमा करना चाहिए, पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो नित्य मूर्खताएं करते रहते हैं। कभी किसी की मजाक उडाएंगेतो कभी किसी को अपमानित करेंगे। कुछ तो ऐसी भी मूर्ख होते हैं जो दूसरे व्यक्ति को शारीरिक, आर्थिक और मानसिक हानि पहुँचने के लिए नित्य तत्पर रहते हैं। ऐसे लोगों को बर्दाश्त करना अपने लिए तनाव मोल लेना है। ऐसे में अपने क्रोध का प्रदर्शन कर उनको दण्डित करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो उनका साहस बढ़ता जायेगा।
व्याख्याकार स्वयं कई बार ऐसा देख चुका है कि कई लोग तो इतने नालायक होते हैं कि उनको प्यार से समझाओ तो और अधिक तंग करने लगते हैं और जब क्रोध का प्रदर्शन कर उन्हें धमकाया जाये तो वह फिर दोबारा वह बदतमीजी करने का साहस नहीं कर पाते। हालांकि इसमें अपनी सीमाओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिऐ और क्रोध का बहाव बाहर से बाहर होना चाहिए न कि उसकी पीडा हमारे अन्दर जाये।
कुछ लोगों की आदत होती है कि वह दूसरों की मजाक उड़ाकर यह अभद्र व्यवहार कर उन्हें अपमानित करते हैं। अनेक लोग उनसे यह सोचकर झगड़ा मोल नहीं लेते कि इससे तो मूर्ख और अधिक प्रज्जवलि हो उठेगा पर देखा गया है कि जब ऐसे लोगों को किसी से कड़े शब्दिक प्रतिकार का सामना करना पड़े पर पीछे हट जाते हैं। अगर प्रतिकार नहीं किया जाये तो वह निरंतर अपमानित करते रहते हैं। अगर हमें ऐसा लगता है कि कोई हमारा निरंतर अपमान या अपेक्षा कर अपने को श्रेष्ठ साबित कर हमारे साथ बदतमीजी कर रहा है तो उसका प्रतिकार करने में अधिक सोचना नहीं चाहिये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
आपका लेख आज के युग में सामयिक है।
सही कह रहे है आप ।
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