पपीहा पन को ना तजै, तजै तो तन बेकाज
तन छाड़ै तो कुछ नहीं, पर छाड़ै हैं ना लाजसंत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि पपीहा कभी भी अपने स्वाभाविकता का त्याग नहीं करता और यदि त्याग दे तो उसका जीवन ही व्यर्थ है। यह देह भले ही नष्ट हो जाये पर अपनी लाज का त्याग नहीं करना चाहिए।
चातक सुतहि पढ़ावई, आन नीर मति लेय
मम कुल याही रीत है, स्वाति बुंद चित देय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि चातक अपने बालक को शिक्षा देता है कि अन्य किसी स्थान से जल ग्रहण मत करो। केवल स्वाति जल को ही ग्रहण करो। इस तरह वह चातक अपने कुल की रीति के अनुसार चलता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-जीवन में सुख और दुख तो लगे रहते हैं पर आदमी को कभी विचलित नहीं होना चाहिए। कई बार जीवन में ऐसा अवसर आता है कि आदमी को अपने स्वाभाविक गुणों से परे होने के लिये प्रेरित किया जाता है और न होने पर उसे पीड़ा पहुंचायी जाती है पर इससे उसको विचलित नहीं होना चाहिए। समय के अनुसार माया आती जाती है पर जो मानसिक रूप से परिपक्व होते हैं वह धनाभाव में भी अपने चरित्र और विश्वास पर दृढ़ रहते हैं और किसी प्रकार का निकृष्ट कर्म या व्यवहार नहीं करते। ऐसे चरित्र के संस्कार मनुष्य को अपने माता पिता से मिलते हैं। चरित्रवान लोग अपने बच्चों को भी ऐसी ही शिक्षा देते हैं कि विपत्ति पड़ने पर अपने नैतिक आधारों से दूर न रहते हुए दृ+ढ़ता पूर्वक अपने धर्म का पालन करें।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
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