Monday, April 21, 2008

संत कबीर वाणी:सबसे मीठा है चुप रहना

बाले जैसी किरकिरी, ऊजल जैसी धूप
ऐसी मीठी नहीं कछु नहीं, जैसी मीठी चूप

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि रेत के समान अन्य किसी वस्तु में वैसी चिकनाहट नहीं है, धूप के समान काई उजली वस्तू नहीं है ऐसे ही चुप रहने से अधिक कोई मीठी वस्तू नहीं है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-ऐसा हमें कई बार लगता होगा कि कहीं कोई बात अपने मूंह से कहकर फिर वहां तिरस्कार का सामना करते हैं तब यह सोचते हैं कि यहां बेकार बोले। वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण और खानपान की वजह से लोगों की सहशीलता वैसे भी कम होती जा रही है। इस पर आजकल की अपने अध्यात्मिकता से रहित शिक्षा लोगों को अहंकारी बना देती है। शिक्षा के नाम पर ढेर सारी उपाधियों का संग्रह कर लिया पर जीवन और आध्यात्म के ज्ञान से शून्य अहंकारी लोगों की संख्या बहुत अधिक है और ऐसे में उनके पास पद और पैसा हो जाये तो फिर कहना ही क्या? अपनी शक्ति प्रदर्शन की इच्छा उन्हें अंधा बना देती है। अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नहीं। ऐसे लोगों से किसी प्रकार के विवाद से बचा जाये तो बहुत अच्छा है।

आयु में छोटा है तो उसे अपनी शक्ति का अहंकार होता है और उसमें बड़े-छोटे का संकोच नहीं होता। अगर अपने को कोई तकलीफ न दे रहा है तो उसे बिना पूछे सलाह देना किसी अन्य से विवाद होने पर उसे समझाना अपना अपमान कराना है। बेहतर है जब तक आवश्यक न हो बोलें नहीं। सभाओं या मीटिंगों या विवाहादि कार्यक्रमों में जायें तो उपस्थिति की औपचारिकता पूरी कर अपने घर की तरफ चल दें। आजकल जिसे देखों आसमान में उड़ रहा है। ऐसे में अगर आप भावुक हैं तो कम से कम बोलने का प्रयास करें। उससे तो अच्छा है खामोश रहें इसी से सम्मान बचा रह सकता है और तनाव से दूर रह सकते हैं। अधिकतर लोग तो इसी चिंता मंे राजरोग बुला लेते हैं कि वह कहते हैं तो कोई सुनता नहीं। इससे बेहतर है फालतु समय ध्यान और मंत्रोच्चारण में लगायें तो मन और वाणी दोनों का व्यायाम हो जायेगा।

1 comment:

Anonymous said...

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