रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सनमान
घटत मान देखिय जबहिं तुरतहिं करिय पयान
कविवर रहीम कहते हैं कि उसी स्थान पर ठहरें जहाँ लोगों में दान और मान-सम्मान का भाव रहता है। जहाँ अपना सम्मान काम होते देखें वहाँ से पलायन कर जाना चाहिए।
संक्षिप्त व्याख्या- आजकल के महंगाई के युग में तो रहीम के यह वाक्य और अधिक प्रासंगिक है। वैसे भी हमें कई जगह अपने काम से जाना पड़ता है। आजकल रिश्तेदारी भी बहुत दूर-दूर होने लगी है इसलिए लोगों को दूसरे शहर जाना पड़ता है। पहले गावों में शादी-विवाह पर बहुत दिन तक रिश्तेदार रहते थे पर अब यह संभव नहीं। मनु स्मृति में तो लिखा है कि 'एक दिन से अधिक जो ठहरे अतिथि नहीं'। अत: लोग वैसे ही दूरी के कारण एक दिन से अधिक नहीं ठहरते। इसके अलावा भी हम किसी समूह में नित-प्रतिदिन रहते हैं और लग रहा हो कि अब उनके मन में सम्मान काम हो रहा है तो उनसे दूरी बना लेना चाहिए। स्थान से यहाँ आशय केवल भौतिक नहीं है बल्कि व्यवहार और संबंध से भी है। अगर हमसे व्यवहार करने वाले लोगों में जब हमारे लिए मान काम हो रहा है उनसे दूरी बनाना चाहिए। अगर हम किसी से रोज मिलेंगे तो वह वैसा सम्मान नहीं करेगा जिसकी हम आशा करते हैं।
इसके अलावा उन लोगों से भी दूरी बनाना चाहिऐ जो किसी का काम नहीं करते। यहाँ दान से आशय देने से है और इसे व्यापक अर्थों में लेना चाहिऐ। जिस्मने दान देने की प्रुवृति नहीं होती उसमें किसी का काम करने के भावना भी नहीं होती। अत: उनसे संपर्क रखने का कोई मतलब भी नहीं है।
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