सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहिं चूक
रहिमन तेहि रबि को कहा, जौ लखै उलूक
कविवर रहीम कहते हैं कि जो सूर्य समस्त प्राणियों की ठंड को दूर करता है और प्रतिदिन पृथ्वी के अंधकार को नष्ट करता है। सारे संसार में प्रकाश बिखेरने वाला सूर्य उल्लू को नहीं दिखाई देता।
भावार्थ- जिस तरह सूर्य के प्रकाश को उल्लू नहीं देख पाता वैसे ही बुद्धि से रहित व्यक्ति ज्ञान से परे रहते हुए जीवन भर कष्ट उठाता है। कई लोगों के लिए तो ज्ञान एक तरह से विष की तरह होता है क्योंकि भ्रम में जीने के आदी ऐसे लोग ज्ञान की बात सुनकर मानसिक रूप से विचलित हो जाते हैं और अपने अज्ञान को ही ज्ञान समझने लगते हैं। जैसे सूर्य की रौशनी को उल्लू नहीं देख पाता वैसे ही मूर्ख लोग ज्ञान की बात नहीं सुनना चाहते। अत: नित सत्संग करते रहना चाहिए और साधू-संतों के सन्देश सुनते रहना चाहिए और और उनके ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए। हमें यह नही देखना चाहिए कि कौन क्या कर रहा है? कई लोग संतों के दोष देखने लगते हैं वह उल्लू की तरह हैं जिन्हें अँधेरा प्रिय हैं। जो इस बात के परवाह नहीं करते कि किसका आचरण कैसा है और उनसे ज्ञान ग्रहण करते हैं वह सही मायने में मनुष्य बुद्धि हैं। जैसे सूर्य की रौशनी को उल्लू नहीं देख पाता वैसे ही मूर्ख लोग ज्ञान की बात नहीं सुनना चाहते। अत: नित सत्संग करते रहना चाहिए और साधू-संतों के सन्देश सुनते रहना चाहिए और और उनके ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
4 comments:
सही विचार।
कबीर सा रा रा रा रा रा रा रा रारारारारारारारा
जोगी जी रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा री
बिल्कुल ठीक !!
आप बिलकुल बजा फरमाते हैं।
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