जीव हनेँ हिंसा करेँ, प्रगट पाप सिर होय
पाप सबन जो देखिया, पुन्न न देखा कोय
संत शिरोमणि कबीरदास जे कहते हैं कि जो जीव को मारता है उसके पाप का भार प्रत्यक्ष रुप से उसके सिर पर दिखाई देता है पर उनके जो पुण्य कर्म हैं वह किसी को दिखाई नहीं देते क्योंकि हिंसा करने वाले पापी होते हैं और उन्हें किसी भी तरह पुण्यात्मा नहीं माना जा सकता।
कबीर तहां न जाइए, जहाँ कपट का हेत
जानो काले अनार के, तन राता मन सेत
इसका आशय यह है कि वहां कदापि न जाइए जहाँ कपट का प्रेम हो। उस प्रेम को ऐसे ही समझो जैसे अनार की कली, जो ऊपरी भाग से लाल परंतु भीतर से सफ़ेद होती है। वैसे हे कपटी लोग मुहँ पर प्रेम दिखाते हैं पारु उनके भीतर कपट की सफेदी पुती रहती है ।
कबीर तहां न जाइए, जहाँ कपट को हेत
नौ मन बीज जू बोय के, खालि रहिगा खेत
इसका आशय यह है कि वहाँ कतई न जाएँ जहां कपट भरे प्रेम मिलने की संभावना हो। जैसे ऊसर वाले खेत में नौ मन बीज बोने पर भी खेत खाली रह जाता है, वैसे ही कपटी से कितना भी प्रेम कीजिये परन्तु उसका हृदय प्रेम-शून्य ही रहता है।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
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3 years ago
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