'कबीर' हरि कग नाव सूं , प्रीती रहे इकवार
तो मुख तैं मोती झडै , हीरे अंत न पार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यदि हरिनाम पर अविरल प्रीती बनी रहे तो उसके मुख से मोती ही मोती झाडेंगे और इतने हीरे कि उनकी गिनती नहीं हो सकती।
बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार
दुहूँ चूका रीता पडै, वाकूं वार न पार
बैरागी वही अच्छा है जिसमें सच्ची विरक्ति हो और गृहस्थ वह अच्छा जिसका हृदय उदार हो। यदि बैरागी के मन में विरक्ति नहीं और गृहस्थ के मन में उदारता नहीं तो दोनों का ऐसा पतन होगा कि जिसकी हद नही है।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
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